गुरुवार, सितंबर 23, 2010

Singhasan Khaali Karo Ke Janata Aaati Hai

A very good poem by Ramdhari Sing Dinkar.
Claim to fame : Used by Jay Prakash Narayan to exhort public at Ramleela Maidan in Delhi after which emergency was imposed

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। रामधारी सिंह "दिनकर"
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।

जनता?हां,लंबी - बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"

मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।

अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता;गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।

सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

5 टिप्‍पणियां:

NITESH CHOPRA ने कहा…

Wonderful collection of poems which are so difficult to find nowadays. plz upload mp3 too.

Himachali Underground ने कहा…

thanks to make this work.

Unknown ने कहा…

Sir, agar khoje to ky nahi milta, bas is taknikikaran ke zamane me ye kavitaye kahi vilut si ho gayi hai... ye to ab to neta bhi bhol gaye hai bihar ke jis andolan ke saandharbah me ye kavita likhi gayi hai ... mai asha karta hu ki is baar janta phir yaad dila degi in siyasat ke thekedaro ko ki "Singhasan Khaali Karo Ke Janata Aaati Hai"

Unknown ने कहा…

Indra ghandi ji uss time kuch to sikha hoga iss poem se

Unknown ने कहा…

Jab Jab, jo Shaasak, Apane ahankar main madhosh hokar Bharatvarsh ki aam Janta ki bhavnayon ko nahi samjhega, usse janta hi seekh sekha degi!